यहां एक सम्मेलन में बोलते हुए, डॉ पॉल ने इस बात पर प्रकाश डाला कि भारत में स्वास्थ्य क्षेत्र में परिवर्तनकारी परिवर्तन हो रहे हैं।

उन्होंने सभा में कहा, "हमें रोबोटिक्स और एआई जैसी नई प्रौद्योगिकियां बनानी चाहिए, लेकिन इस तरह से कि यह डिजिटल विभाजन को न बढ़ाए और जो लोग डिजिटल रूप से साक्षर नहीं हैं, वे आसानी से इसका इस्तेमाल कर सकें।"

उन्होंने जोर देकर कहा, "हमें यह भी सुनिश्चित करने की जरूरत है कि डिजिटल समाधान अधिकारों के दायरे में हों और समावेशिता, मानवाधिकारों की सुरक्षा और आगे लोकतंत्रीकरण को बढ़ावा दें।"

डिजिटल समाधानों को जीवन जीने में आसानी के पारिस्थितिकी तंत्र को बढ़ावा देना या बनाना चाहिए न कि इसे लोगों के लिए और अधिक जटिल बनाना चाहिए। डॉ. पॉल के अनुसार, इनसे जीवन की गुणवत्ता में वृद्धि होनी चाहिए, खुशहाली को अपनाना चाहिए, पारंपरिक ज्ञान को शामिल करना चाहिए और हमारे स्वास्थ्य देखभाल कार्यों में तेजी लानी चाहिए।

स्वास्थ्य सचिव अपूर्व चंद्रा ने कहा कि राष्ट्रीय डिजिटल मिशन का एक लक्ष्य स्वास्थ्य सेवाओं की पहुंच बढ़ाना और ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के बीच असमानता को कम करना है।

उन्होंने CoWIN और आरोग्य सेतु ऐप की सफलता पर प्रकाश डाला, जिसने देश भर में 220 करोड़ से अधिक टीकाकरण करने में मदद की।

चंद्रा ने इस महीने के अंत में यू-विन पोर्टल के आगामी लॉन्च के बारे में जानकारी देते हुए कहा, "सरकार आयुष्मान भारत डिजिटल मिशन के माध्यम से उसी मॉडल को दोहराना चाहती है, जो सरकार की एक प्रमुख योजना है।" प्रतिवर्ष 3 करोड़ से अधिक गर्भवती महिलाओं एवं माताओं तथा लगभग 2.7 करोड़ जन्म लेने वाले बच्चों की दवाएँ।

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) के महासचिव भरत लाल ने कहा कि स्वास्थ्य सेवा एक बुनियादी मानव अधिकार है और अच्छे स्वास्थ्य के बिना, मनुष्य की पूरी क्षमता का एहसास नहीं किया जा सकता है।

उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि एनएचआरसी का दायरा आर्थिक से बढ़कर सामाजिक-सांस्कृतिक क्षेत्रों तक बढ़ गया है और चूंकि स्वास्थ्य क्षेत्र सभी को प्रभावित करता है, इसलिए यह वर्तमान में इस क्षेत्र में भी लगा हुआ है।